किसी शाम से मैं
सुबह जा मिलूँगी
हूँ धूप चाँदनी से
किसी दिन मिलूँगी
मिलूँगी ..... किसी दिन
मैं ख़ुद से मिलूँगी ...
बैठ कर रोशनी
थक गई है यूँ भी दिनभर ....
छांव भेजी है पहाड़ों ने
चीनारो में यूँ भर भर ......
हूँ हवा ख़ुशबुओं में मैं
घुल घुल के बहूँगी ......
मिलूँगी ..... किसी दिन मैं ख़ुद से मिलूँगी ...
मिलूँगी ..... किसी दिन मैं ख़ुद से मिलूँगी ...
रास्ते चल रहे है
कभी रुकते ही नहीं है ....
फ़ासले मंज़िलो से
कभी घटते ही नहीं है ....
हमसफ़र हूँ मैं हमसफ़र
बनके तुझसे आ मिलूँगी ....
मिलूँगी ..... किसी दिन मैं ख़ुद से मिलूँगी ...
रेत की हाथो से
जाने पटती क्यूँ नहीं है .....
वक़्त सी, रेत भी
कभी टिकती ही नहीं है .....
लकीरों में हाथो की
कभी आके मैं मिलूँगी .....
मिलूँगी ..... किसी दिन मैं ख़ुद से मिलूँगी ...
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