20 April 2025

मुझमें रहता है जंगल

 



मुझमें रहता है जंगल 

धू धू जलता है पल पल 


इसमें चिड़िया रहतीं थी

हर सुबह चहका करती थी 

उड़ गई वो जाने कहां फ़िर

छोड़ पीछे ये  शतदल 


एक जुगनू पलता था मुझमें 

जलता बुझता था मुझमें

आया दावानल कोई 

जुगनू से तारे, सब गए जल 


थे कई झाड़ और झुरमुट  

कितनी नदियां और झरने 

अब ठूंठे पेड़ सी हूं मैं 

ठहरा अब, बहता जो जल 


मुझमें एक सदी गुज़र गई 

मुझमें कई सदियां गुजरेंगी 

सूना सूखा  ये जंगल 

लिखेगा गाथा  कोई प्रतिपल 


All on a Sunday Morning




With Friday fading into dusk

and Saturday rising soft with trust,

the clatter of chores begins to die,

and life lets out a weary sigh.

In quiet corners, I seek me

I whisper through the hush and plea,

“Hey Sandy… are you there, still free?”

I speak to myself, to just be me.



And as life unfolds its ceaseless spin,

I wonder—can we carve within

a day that’s not for rush or race,

but stillness wrapped in warm embrace?

Oh yes, a Sunday—how we crave

a gentle tide, a soul to save,

a space where thought no longer bites,

where hearts don’t bleed, and minds take flight.

A day to soothe the aching strain,

to mend the wound, release the pain,

to flirt with skies of smoke and wine,

and dream through hours lost in time—all on a Sunday morning.


No battles fought, no tears to feign,

just me and soul, no need explain.

We speak in silence, stare the vast,

trace stars through thoughts too deep to pass.

The sun, the sand, a sacred sound—the universe within, unbound—all on a Sunday morning


Let there be no dusk or dawn,

just velvet dark and peachy calm.

Moments freeze, then drift away,

and time itself forgets to stay.

Eternity pauses, breath held tight,

as cosmos sways in mystic light—its rhythm echoing the sky,

all on a Sunday morning.


From specks of hope, a life takes flight,

emerges bold from endless night

The universe rewrites its lore

what once was lost is found once more.

A chronicle of death and breath,

of quiet triumphs, silent deaths.

No clocks to count, no wounds to weigh

—just grace that guides the soul’s own way

all on a Sunday morning.


8 April 2025

मेरी चाहतों में

 


                मेरी चाहतों में  बस रहे  हो 

कह दो हां 

मेरी राहतों में  रह रहे  हो 

सुन लो ना!


हर सुबह तुमसे 

शुरू  हो गई ।

शामें तुम से जुड़ी और 

रातों में खो गई ।

ख्वाबों की स्याही से 

रगो  में  बह रहे हो,

तुम ही ना !

दुआओं में खुदा से

मांगा तुमको

तुम को , हां !



पन्नों पे लिखी इक 

कहानी हो गई 

बीते उस  सफ़र की 

रवानी हो गई 

इसक की आयतों की

हर शह में रह रहे हो

तुम ही हां 

रस्मों सा है निभाया 

हां निभाया 

तुमको जां



एल्बम की वो फ़ोटो

पुरानी हो गई 

उम्र गुज़री, वक़्त गुज़रा 

सब निशानी खो गई

यादों के उस शजर से 

उड़ गए जो वो परिंदे, 

तुम हो न 

फिर भी आदतों में 

है बसाया

तुमको  जानेजां 




7 April 2025

मेरी चाहतों में बस रहे हो






मेरी चाहतों में बस रहे हो 

कह दो हां 

मेरी राहतों में  रह रहे  हो 

सुन लो ना!



हर सुबह तुमसे 

शुरू  हो गई ।

शामें तुम से जुड़ी और 

रातों में खो गई ।

ख्वाबों की स्याही से 

रगो  में  बह रहे हो,

तुम ही ना !!

रब की आयतों में

तुम ही तुम हो 

सुन लो ना!


पन्नों पे लिखी एक

कहानी हो गई 

बीते उस  सफ़र की 

रवानी हो गई 

यादों के शजर से उड़ गए जो

वो परिंदे, तुम हो न 

फिर भी आदतों में 

तुम बसे हो 

सुन लो ना ...


18 July 2024

colors

 Let my thoughts 

Paint you ...

On canvas of my love .,,,

Lavender red and blue ...


Lavender for 

Your smell of Dew 


Red  for exploring 

The Tactile new 


Blue  for the 

Eyes that have lustrous hue ..,


#मैं_ज़िंदगी

21 March 2024

मेरी जाना

ये उलझी उलझी  सांसों का 

बे मतलबी सी बातों का 

हाथों में मेरे, हाथों का 

कांधो पे ढलके बालों का 

मेरी ख्वाहिशों का ख्वाबों से

ये राबतां है कैसा, मेरी जानां



वो कैडबरी की गिफ्ट का

वो बाइक की उस लिफ्ट का

वो पीछा करती स्विफ्ट का

वो दोस्ती में रिफ्ट का

ये माजरा है क्या मेरी जानां



वो खत वाली  किताबों का

मेरे सवालों के जवाबों का 

वो खिले खिले गुलाबों का 

आंखों में उन आदाबों 

मदहोश उन शराबों का 

क्या है  सिलसिला  ओ जानां ...


उस फलक  से इस ज़मीन का 

 उस शुबाह से इस यकीन का 

इक  प्यार  हो  हसीन सा

हो साथी इक जहीन सा 

तू ही अब मेरा हो मेरी  जानां...


~ संध्या प्रसाद 

17 March 2024

सुनो न ज़िंदगी घर को चलते है

 सुनो न ज़िंदगी..

चलो  न, अपने  घर को  चलते है ..

ज़ख्म खाई रातों के घावों पे

सुबह का मलहम  सा रखते है !


तीखी धूप सी 

जो जल उठी हो खुद यूं भीतर से,

आओ न ठंडे सायों को 

तुम्हारा बदन  सा करते है .


कहीं  सीधी नहीं 

बड़ी  ही उल्टी है दुनिया ये 

चलो न पांव को सर 

और 

सर को पांव करते है 

चलो न ज़िंदगी फिर से 

शहरों को गांव करते है 

चलो न ज़िंदगी

आज अपने घर को चलते है 

16 March 2024

अपनी अपनी सबने कही है

 अपनी अपनी सबने कही है 

सब को लगता है वो सही है 


धुआं चिलम चिता और चिंता

आंखों से कब सब नदी बही है


कच्चे रिश्ते ,   कच्चे वादें 

कच्चे घर की दीवार ढही है 


बेटे होंगे आंखों के तारें  

बिटिया पावन धाम खुद ही है 


काम क्रोध लोभ और माया 

क्यों हर जीवन का सार यही है 


पुण्य का क्रेडिट पाप का डेबिट

रब के पास सब खाता बही है 


छुप जाओ तुम चाहे ख़ुद से

'उसकी ' आंखें देख रही है



~संध्या

सबने अपनी अपनी कही है


अपनी अपनी सबने कही है 

सब को लगता है वो सही है 



धुआं चिलम चिता और चिंता

आंखों से कब सब नदी बही है


टूटे रिश्ते ,   टूटे खंडहर

कमज़ोर कड़ी हरदम ही ढही है 


वर्तमान है कीमती पूंजी 

भूत यही  है भविष्य यही है 


पुण्य का क्रेडिट पाप का डेबिट

रब के पास सब खाता बही है 


छुप जाओ तुम चाहे ख़ुद से

'उसकी ' आंखें देख रही है





~संध्या 




15 March 2024

एक धुन

 एक धुन सदियों  से

गुनगुनाती तुझे

वो है गाती तुझे

सुनाती है तुझे...

एक धुन सदियों  से

गुनगुनाती तुझे

वो है गाती तुझे

सुनाती है तुझे...



वो धुन भंवरों ने है चुराई

जाने कैसे 

वो धुन यूं बारिशों में खनखनाई

जाने कैसे 

इस हवा में सुर छिपे है 

बूंदों में स्वर बुने है 

बहारें बोलती है 

किनारे डोलती है

राज़ दिल में जो छिपे है

आंखों से वो खोलती है 

इस देहरी से उस

दहलीज पे बुलाती है तुझे

इश्क ही बस ज़िंदगी है 

ये बताती है मुझे 










8 March 2024

आंखें जादू


आंखें जादू, हुस्न का तड़का

दिल में इश्क  का शोला भड़का


सुनहरी सुबह की रंगत देख  के

चांद रात का दिल यूं धड़का


बातों वादों का वो धनी  था

जेब से लेकिन  था वो कड़का 


दिल में वो दबे पांवों आया  

न खिड़की न दरवाज़ा खड़का 


ग़ज़ल गांव के बाशिंदे दोनो 

धूप सी लड़की चांद सा लड़का









7 March 2024

आधी नज़्म का पूरा टुकड़ा

आधी नज़्म का पूरा टुकड़ा 

किसे सुनाएं अपना दुखड़ा 


नई नई  दौलत थी उसकी

चलता था वो अकड़ा अकड़ा


नए शहर का काज़ी था वो 

नया  चोर था उसने पकड़ा


कितने थे वो दर्द छुपाए 

हंसती आंखे सुंदर मुखड़ा 


गली के रस्ते चौड़े थे सब 

दिल का  रस्ता सकड़ा सकड़ा 


पहन के इक तितली का  मुखौटा 

जाल बुने वो काला मकड़ा


 कौन था रियल ,कौन वर्चुअल

कोई न जाने क्या है लफ़ड़ा 


 साँझ कहे जीवन में हर कोई

सुख दुख के बंधन में जकड़ा




 






5 March 2024

एक ख़त


एक खत  

एक मियाद से

आँखो मे लिखा है

एक सच

कई सदियों से

दिल ने कहा है

क्या  वो खत तुम पढ़ोगे बताओ ज़रा

क्या वो सच तुम सुनोगे बताओ ज़रा

हां बताओ ज़रा .....

हां बताओ ज़रा .....


क्या लिखा  उस  खत मे ये

कोई भी न जाने?

जो कहा  इस दिल ने वो

कोई भी न माने!

एक कहानी  पुरानी जो

 वक़्त ने लिखी थी ।

उसमे राजा था, रानी 

कहीं भी नहीं थी !!

एक नदी थी जो

सागर से मिलने चली थी ।

खो गई राह मे

या फिर गुम हो गई थी?

जो  अधूरी कहानी  है  , सुनाओ ज़रा...

दरियाओं को सागर से, मिलाओ ज़रा...

हां बताओ ज़रा

हां सुनाओ ज़रा......


ये जो खत तूने आंखों ही 

आंखों में पढ़ा है

मेरे दिल ने तेरे दिल को

कहते सुना है 

मेरा छोटा सा घर है,

बसाओ ज़रा 

रानी अपने उस घर की 

बनाओ ज़रा 

जताओ ज़रा 

पास आओ जरा