मुझमें रहता है जंगल
धू धू जलता है पल पल
इसमें चिड़िया रहतीं थी
हर सुबह चहका करती थी
उड़ गई वो जाने कहां फ़िर
छोड़ पीछे ये शतदल
एक जुगनू पलता था मुझमें
जलता बुझता था मुझमें
आया दावानल कोई
जुगनू से तारे, सब गए जल
थे कई झाड़ और झुरमुट
कितनी नदियां और झरने
अब ठूंठे पेड़ सी हूं मैं
ठहरा अब, बहता जो जल
मुझमें एक सदी गुज़र गई
मुझमें कई सदियां गुजरेंगी
सूना सूखा ये जंगल
लिखेगा गाथा कोई प्रतिपल
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