20 April 2025

मुझमें रहता है जंगल

 



मुझमें रहता है जंगल 

धू धू जलता है पल पल 


इसमें चिड़िया रहतीं थी

हर सुबह चहका करती थी 

उड़ गई वो जाने कहां फ़िर

छोड़ पीछे ये  शतदल 


एक जुगनू पलता था मुझमें 

जलता बुझता था मुझमें

आया दावानल कोई 

जुगनू से तारे, सब गए जल 


थे कई झाड़ और झुरमुट  

कितनी नदियां और झरने 

अब ठूंठे पेड़ सी हूं मैं 

ठहरा अब, बहता जो जल 


मुझमें एक सदी गुज़र गई 

मुझमें कई सदियां गुजरेंगी 

सूना सूखा  ये जंगल 

लिखेगा गाथा  कोई प्रतिपल 


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