आओ बिखराओ न
बन हवा मेरी नस नस में
घुल जाओ न
पेड़ के जो थे जालें
वो रेशम हुए
क़तरे पानी के
थम थम शबनम हुए
उलझी बूँदों से प्यास
बुझा जाओ न
बन हवा मेरी नस नस में
घुल जाओ न
है सिगार जो हाथ में
सुलगी हुई
ज़िंदगी किस ख़ुमार में
उलझी हुई
है धुआँ आग दिल में
लगा जाओ न
बन हवा मेरी नस नस में
घुल जाओ न
वो रुक रुक निगाहें यूँ
उठती हुई
वो बेकल हँसी बेजा
हँसती हुई
एक निगाह, इन निगाहों
को छू जाओ न
बन हवा मेरी नस नस में
घुल जाओ न
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