28 August 2017

हूँ मैं ख़ुशबू कोई

हूँ मैं ख़ुशबू कोई 
आओ बिखराओ    
बन हवा मेरी नस नस में 
घुल जाओ  

पेड़ के जो थे जालें 
वो रेशम हुए 
क़तरे पानी के 
थम थम शबनम हुए 
 उलझी बूँदों  से प्यास 
बुझा  जाओ  
बन हवा मेरी नस नस  में 
घुल जाओ  

है सिगार जो हाथ में 
सुलगी हुई 
ज़िंदगी किस ख़ुमार में 
उलझी हुई 
है  धुआँ आग दिल में 
लगा जाओ  
बन हवा मेरी नस नस  में 
घुल जाओ  

वो रुक रुक निगाहें यूँ 
उठती हुई 
वो बेकल हँसी बेजा 
हँसती हुई 
एक निगाह, इन निगाहों 
को छू जाओ  
बन हवा मेरी नस नस  में 
घुल जाओ  

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