25 February 2024

एक नगीने की तरह नायाब हो तुम

 



एक नगीने की तरह नायाब हो तुम 

ज़िंदगी एक सहरा, शादाब हो तुम


दिलकश भी तुम दिलनाज़ भी तुम 

हरदिल हो अजीज़,  सरताज हो तुम


एक अरसे से कोई मुलाकात  नहीं 

किस बात पे हमसे नाराज़ हो तुम 


हम तुमसे जुड़े जैसे रूह से' बदन 

परिंदा है हम , परवाज़ हो तुम 


सफ़र से है हम और सफ़र पे है हम

कि अंजाम ही तुम, आगाज़ हो तुम 

10 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

रौशन जसवाल विक्षिप्त said...

शानदार

Sandhya Rathore Prasad said...

आभार सर

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Anita said...

शानदार

Sandhya Rathore Prasad said...

आभार सुनील जोशी जी

हरीश कुमार said...

बहुत सुंदर रचना

हरीश कुमार said...

बहुत सुंदर रचना

Anita said...

बेहतरीन ग़ज़ल

अनीता सैनी said...

बहुत सुंदर कहा।