20 August 2017

है मर्ज़ इक लाइलाज तू

Courtesy Internet 

है मर्ज़ इक लाइलाज तू
मेरे ज़ख़्म का एक दाग़ तू 
फिर भी मैं हूँ ...
जाने क्यूँ ?
दिल जान से 
चाहूँ तुझे  मैं ....यूँ!

पड़े  रूह  पर  कुछ सिलवटे
यादों की जब हवा  चले 
बंजर पड़ी दिल की ज़मी को 
वादों का इक सहरा मिले 
दर्द का दिया ये, मंज़र क्यूँ 
जलती है यादें ... हाँ यादें ..धूँ 
फिर भी मैं हूँ ...
जाने क्यूँ 
दिल जान से 
चाहूँ तुझे मैं ....यूँ!!

पशेमान होती है करवटें
जब ख़्वाब रब से दुआ करें 
बुझते हुए से चरागो को
जलने का एक  हौसला मिले 
छीना  सुकुँ रातों का , तूने क्यूँ 
दिन हो गया, अंधी सुरंग सा ज्यूँ
फिर भी मैं हूँ ...
जाने क्यूँ 
दिल जान से  
चाहूँ तुझे  मैं ...यूँ !!

सिवा दर्द, कुछ भी दिया नहीं
पर कोई, तुझसे गिला नहीं 
चाह कर भी 
चाहूँ तुझे मैं क्यूँ ?
तू ही बता दे क्यूँ ...

तू ही बता से क्यूँ ...

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