मेरे ज़ख़्म का एक दाग़ तू
फिर भी मैं हूँ ...
न जाने क्यूँ ?
दिल जान से
चाहूँ तुझे मैं ....यूँ!
पड़े रूह पर कुछ सिलवटे
यादों की जब हवा चले
बंजर पड़ी दिल की ज़मी को
वादों का इक सहरा मिले
दिया दर्द का मंज़र ये, तूने क्यूँ
जलती है यादें ... हाँ यादें ..धूँ
फिर भी मैं हूँ ...
न जाने क्यूँ
दिल जान से
चाहूँ तुझे मैं ....यूँ!!
पशेमान होती है करवटें
जब ख़्वाब रब से दुआ करें
बुझते हुए से चरागो को
जलने का एक हौसला मिले
छीना सुकुँ रातों का , तूने क्यूँ
दिन हो गया, अंधी सुरंग सा ज्यूँ
फिर भी मैं हूँ ...
न जाने क्यूँ
दिल जान से
चाहूँ तुझे मैं ...यूँ !!
सिवा दर्द, कुछ भी दिया नहीं
पर कोई, तुझसे गिला नहीं
न चाह कर भी
चाहती तुझे मैं हूं !!
तू ही बता ...
हां बता दे क्यूँ ...
चाहूँ तुझे दिल जान से मैं यूं ??
No comments:
Post a Comment