न चाहूँ तुझे मैं
ये वाजिब नहीं है
मिले चाँद सबको
मुनासिब नहीं है
हुए रेत से ख़्वाब
कब कैसे क्या जाने
पलकों से फिसलें
ये दिल की न माने
कहे चाँद ये तो
मुनासिब नहीं है
हुए जिस्म साये
कब कैसे क्या जाने
कब साथ छोड़े
कब कौन जाने
सुनो चाँद ये तो
मुनासिब नहीं है
न चाहूँ तुझे मैं
ये वाजिब नहीं है
मिले चाँद सबको
मुनासिब नहीं है
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