सबकी सदा सुनता है तू, क्यूँ मुझको गिला दे या अल्लाह
मेरे सज़दें, मेरी दुआ का कोई सिला दे या अल्लाह
सदियों से किसका रस्ता , देख रहा है ये साहिल
कोई नदिया कोई समुन्दर हो तो मिला दे या अल्लाह।
रिश्तों के पेड़ों की शाखें , पतझड़ में सब सूख गई
सूखी हुई इन शाख़ों को से फिर से खिला दे या अल्लाह।
मुर्दों के इस शहर में जैसे हर कोई बेजान है
मरे हुए से इन लोगों को फिर से जिला दे या अल्लाह
दिन हरदम रोता रहता है, रात सिसकती रहती है
थोड़ा सबर इस वक़्त को तू ही, फिर दिला दे या अल्लाह।
टूटी चूड़ी उस औरत की, कि एक शहादत और हुई
नफ़रत को उलफ़त का कोई सिला तो दे या अल्लाह।
Corrections by @sipsacredheart ट्विटर
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