14 May 2017

भीगी क़मीज़ें


भीगी  सी क़मीज़ें 
सूखे से पसीने 
ख़ुशबू को आते है 
कितने क़रीने 

सोंधी सी है मिट्टी
क़तरे भीने भीने 
धूप ने  फ़जा में खोले 
कितने सफ़ीने 

जागी है ये रातें 
बरसों और महीने 
चाँद प्यासा उतरे 

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