26 May 2017

क्या कुछ याद है तुम्हें


Courtesy Internet
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क्या कुछ याद है तुम्हें
वो बातें ... वो मुलाक़ातें 
वो सूखे से दिन 
वो भीगी सी रातें 
हँह  ... क्या कुछ याद है तुम्हें

मोड़ पर एक रोज़ उमर जा के ठिठकीं 
यादों को आई यादों की हिचकी  कहा था यादों ने कुछ बुदबुदाकर 
 क्या कुछ याद है तुम्हें ?? 

बीतें सालों की तस्वीर सिराहने रखी
हर चेहरे पे थी कहानी लिखी 
हुई ग़ुम कहानी सफ़ों में सिमटकर 
क्या कुछ याद है तुम्हें

बंद होंठो से कितनी आवाज़ें दी थी 
कहाँ से जाने कहाँ को चली थी 
कहीं खो गई मैं तुमसे यूँ जुड़कर 

क्या कुछ याद है तुम्हें ??
नहीं न  ...... जानती थी !!! 

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