13 June 2017

दर पे तेरे हाज़िर हुई

दर पे तेरे हाज़िर हुई 
कुछ ख़्वाहिशें काफ़िर हुई 

सजदा किया तेरी चाहतों का 
कुछ आदतें मुहाज़िर हुई 

कुछ राज़ दिल में छुपा के रखें 
कुछ बातें अपनी ज़ाहिर हुई 

कुछ चाल जहाँ चल गया था 
कुछ चालों  में मैं माहिर हुई 

इमरोज होना चाहा था मैंने 
इश्क़ में  लेकिन साहिर हुई 





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