दर पे तेरे हाज़िर हुई
कुछ ख़्वाहिशें काफ़िर हुई
सजदा किया तेरी चाहतों का
कुछ आदतें मुहाज़िर हुई
कुछ राज़ दिल में छुपा के रखें
कुछ बातें अपनी ज़ाहिर हुई
कुछ चाल जहाँ चल गया था
कुछ चालों में मैं माहिर हुई
इमरोज होना चाहा था मैंने
इश्क़ में लेकिन साहिर हुई
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