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एक दिन तेरे ...घर आऊँगीं
सुन, ज़िंदगी तुझे,
कुछ पल सही , जी जाऊँगीं
जो है यहाँ वहाँ,
बिखरे हुए ...
लम्हे कई ...ख़ुशियों के वो ...चुन लाऊँगीं ...
पश्मीना धागे मैं चुनती रही
धागों से कुछ ख़्वाब बुनती रही
इन, धागों में अगर
उलझे जो तू ......सुलझाऊँगी
मोड़ पे सदियों से बैठी रही
चाँद का रस्ता तकती रही
इन, राहों से अगर
गुज़रे जो तू .....मैं आऊँगी।
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