28 March 2017

‏आज दिन ने मुझे उधेड़ा बहुत है

आज  दिन ने मुझे उधेड़ा बहुत है 
उधेड़ा मगर सिया कुछ नहीं ...

उम्र से उम्र भर रहा फ़ासला 
वक़्त का कब कहाँ रुका क़ाफ़िला 
यादों ने आज तक  सहेजा बहुत है 
सहेजा मगर दिया कुछ नहीं 

आँख के पोर से ख़्वाब सब बह गए 
दर्द से दर्द की बात सब कह गए 
आँखो ने आज तक  समेटा बहुत है 
समेटा मगर कहा कुछ नहीं 

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