कितनी दफ़ा
ऐसा भी होता है
तुम तक आते आते,
ठिठक जाती हूँ ...
लौट जाती हूँ ..
और फिर
आती हूँ एक हौसला जुटाकर
मगर ...
अब तुम वो नहीं हो
जो प्रतीक्षा करते थे मेरी ..
बुझे मन से
लौट आती हूँ,
एक हौसला जुटाने के लिए ,
तुम तक फिर से
आने के लिए !
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