ख़ामोशी - कहने तो हर्फो से बन पड़ा है ये लफ्ज़ !
जाने कितने हीर- राँझा और लैला-मजनू, अपने प्रियतम को न पा सके क्यूंकि मुई ये ख़ामोशी जुबां पे ताला मार गई !!
दोस्तों, यूँ तो बड़े सारे पहलू है इस मोहतरमा "ख़ामोशी" के - कभी अच्छी भी लगती है; कभी जी भर के कोसने को जी करता है इसे।
दोस्तों, यूँ तो बड़े सारे पहलू है इस मोहतरमा "ख़ामोशी" के - कभी अच्छी भी लगती है; कभी जी भर के कोसने को जी करता है इसे।
.... अब देखिये न ....
हम है जो बातों की दुकान खोले बैठे है और जनाब उनका और ख़ामोशी का चोली दामन का साथ है !जी तो करता है कह दे उनसे -"हमारे थोड़े लफ़्ज़ ले ले और कमबख्त ख़ामोशी थोड़ी हम ले लेते है" ... मगर उनसे ये कहे कौन ???
सुनिए, आप ही हमारी बात उन तक पंहुचा दीजिये न ........
थोड़ी सी ख़ामोशी तुम मुझे दे दो ना
लफ़्ज़ थोड़े से तुम मेरे भी ले लो ना
आँखों से बोल दी लब ने जो ना कही
ख़्वाबों से तुम मेरे अब मगर खेलो ना
कभी नहीं कहीं हुआ इश्क़ का ये हादसा
हाँ सौंपती हूँ दिल मेरा, ये लो ना
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