इंसान क्या कुछ सोचता है। ... . जाने क्या चाहता है और मैं ?
मैं तो अपनी ही बनाई एक दुनिया में जीती हूँ। मेरी तो दुनिया ही अलग है - बिलकुल अलग ! किसी परी के किस्से जैसी ......
मैं तो अपनी ही बनाई एक दुनिया में जीती हूँ। मेरी तो दुनिया ही अलग है - बिलकुल अलग ! किसी परी के किस्से जैसी ......
चाँद को पाने की ख्वाहिश ... सितारों भरे आसमान में जाकर जैसे हवा में हाथ हिलाऊ तो कुछ सितारे मुठ्ठी में आ गिरे मेरे ... बस भरभरा लूँ अपने ऊपर- जैसे चमकीली सी कोई बारिश ....
फिर लगता है .... मैं तो साँझ हूँ ..... न धूप की हूँ और न ही चांदनी की कितने किस्से मशहूर है चाँद चांदनी के .. हाँ देखो न , कई किस्से हो गए है ।
मगर ज़माना बदला है अब तो क्या कहते है - " रिश्ता वही , सोच नई !!"
जनाब, अब तो धूप और चांदनी के किस्से भी मशहूर होने लगे है।
#गौतम राजऋषि साहब की एक कहानी पढ़ी थी मैंने (ब्लॉग पर ही ) - जहाँ धूप को चाँद से प्यार था !!!
जनाब, अब तो धूप और चांदनी के किस्से भी मशहूर होने लगे है।
#गौतम राजऋषि साहब की एक कहानी पढ़ी थी मैंने (ब्लॉग पर ही ) - जहाँ धूप को चाँद से प्यार था !!!
मैंने तो ऐसा कभी सोचा ही नहीं था - धूप और चाँद ??
गौतम साहब लिखते है - चाँद के गाल छुए धूप ने तो हलकी जलन रह गई - उफ़्फ़ क्या कल्पना है साहब !!
गौतम साहब लिखते है - चाँद के गाल छुए धूप ने तो हलकी जलन रह गई - उफ़्फ़ क्या कल्पना है साहब !!
......
..
.
और साहब हम - साँझ !!
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और साहब हम - साँझ !!
न धूप के न चाँद के न सूरज के और न चाँदनी के !!!
बस इसीलिए कह बैठे - तू धूप की है ख़्वाहिश
तू
धूप की है
ख़्वाहिश
तू धूप
की है ख़्वाहिश
क्या मैं,
औ' मेरी गुज़ारिश
हूँ साँझ मैं बेनूर सी
जैसे इल्तज़ा
बिन सिफारिश
सहरा सी मैं तरसा करूँ
बादल बिना बरसा करूँ
बरसूँ मैं यूँ मुसलसल
जैसे बूँद बिना कोई बारिश
न दिन
मुझे ही याद
करे
न रात मेरी फ़रियाद करे
एक छोड़े, एक ठुकराए
है वक़्त की कोई साज़िश
है वक़्त की कोई साज़िश
तेरी इबादत
लाख करूँ
चाहे खुद
को मैं यूँ ख़ाक करूँ
जलती नहीं मैं बुझती
नहीं
कैसी है ये
आज़माइश
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