जब से उम्र संभाली है , भरे पुरे से घर में जहाँ मम्मी पापा और सब भाई बहनो के साथ जब भी रहे जहाँ भी रहे , एक बात तो तय रही - सबसे पहले रेडियो के बोल पड़ते कानो में -
जब आमला में थे तब रेडियो सीलोन हुआ करती थी , विविध भारती था। फिर जब भूटान पहुचे तो नेपाल रेडियो। वापस गुजरात तब विविध भारती और आल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस।
कुल मिला कर गीत संगीत के इर्द गिर्द बचपन गुज़रा और जवानी की दहलीज़ में कदम रखा और अब तो क्या कुछ नहीं है fm रेडियो, mp3 और भी जाने क्या क्या ......
गाने सुनाती थी और उतनी ही शिद्दत से गाती भी थी - अगर संगीत न हो तो शायद मैं क्या जाने पागल ही हो जाऊं।
हर किस्म के गाने सुने है - कभी याद नहीं रहा - संगीतकार कौन, गीतकार कौन या फिल्म और उसके हीरो या नाइक कौन बस याद रहा तो गीत और उसका संगीत
गहनों से कभी ख़ास लगाव नहीं रहा - सोना चांदी खरीदा नहीं कभी - मगर जनाब इस गुज़रते वक़्त को लगा कि , भई, इस गरीब सी लड़की को कुछ अमीर किया जाए तो जनाब - बालो की गहराई में चांदी का मुलम्मा चढ़ा जाते है हर थोड़े दिन पर।
और मैं झगड़ती हूँ समय से - "नहीं चाहिए मेहेरबानी तुम्हारी , हुँह !!!"
"रखो अपनी चाँदी अपने पास" - ये कहकर हर थोड़े दिनों में खिजाब लगा लेती हूँ अपने बालो पर जो कभी भूरे हुआ करते थे और अब मेरे निरंतर प्रत्न से कुछ काले से दिखने लगे है
( ऐ सुनो, तुम हाँ तुम - मेरे readers - किसी से कहना मत! - ये हमारी आपस की बात है - ठीक है न ??)
बड़ी बुरी आदत है हमारी - शुरू कहीं से करते है और पहुच जाते है कही और ही
वो कहते हैं न -
"जाते थे जापान , पहुच गए चीन!"
बस कुछ ऐसा ही हाल है हमारा !
खैर, वापस आते है।
बात थी गीत संगीत की - तो आजकल अरिजीत सिंह, मोहित चौहान, अरमान मलिक और न जाने कितने उम्दा गायक है !
हम तो नाम भी नहीं जानते बहुतो के
("क्या करे ओ दोस्तों, मैं हूँ आदत से मजबूर !! " हाहाहाहा क्या करे बुढ़ापा है, याद नहीं रहता न !!)
आगे चले तो बात यूँ हुई कुछ कि पिछले दिनों एक गाना सुना - शायद अरिजीत सिंह और श्रद्धा कपूर का गाया बागी फिल्म का गीत (ये जानकारी मुझे अपनी बेटी से मिली .. हेहेहे ) बड़ा अच्छा लगा वो गीत
गीत के बोल है - सब तेरा ... बड़ा ही खूबसूरत संगीत है .. साहब हमें लगा की हमें भी इसी धुन पे कुछ लिखना चाहिए , गाना चाहिए - बस लिख डाला।
और तो और रिकॉर्ड कर के soundcloud पर भी डाल दिया .
आप भी सुनिए - शायद इन शब्दो में रम जितना ही नशा हो ...... हाहाहाहा ..... मज़ाक कर रहे है भई !!
अब देखिये न, हम पर
"कैसा जादू ये हुआ है, साँसों में एक धुआ है "
कैसा जादू ये हुआ है, साँसों में एक धुआ है
हर धड़कन धीमे धीमे तुझे देती एक सदा है
तू कहाँ .. तू कहाँ ...... तू कहाँ ....
ख़्वाबों में कुछ हुआ है, क्या तूने कुछ कहा है?
दिल क़ाबू में न रहा ना, ये मुझको क्या हुआ है?
सपनो में पल रही हूँ पलकों पे चल रही हूँ
क्यूँ बता .... क्यूँ बता .... क्यूँ बता ....
उड़ती हूँ आसमां में, बादल पे पाँव मेरे
डर है क़ि गिर न जाऊँ ,मैं तेरी "साँझ- सवेरे"
बूंदों सी गिर रही हूँ तुझ में ही बिखर रही हूँ
थाम आ .... थाम आ .... थाम आ ....
ज़िंदगी के जश्न को मैं कुछ ऐसे जी रही हूँ
चुस्क़ियों में धीमें धीमें जैसे रम यूँ पी रही हूँ
बहकी सी क्यों हुई हूँ दहकी सी क्यों हुई हूँ
है नशा .... है नशा .... है नशा ....
मुझको ये रोग कैसा जाने क्यूँ कब लगा है
करती ना काम मुझपर कोई भी अब दवा है
नब्ज़ मेरी धीमे धीमे अब थमने भी लगी है
कर दुआ .... कर दुआ .... कर दुआ....
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