17 August 2015

आई है भोर


उठा  कैसा शोर, पूरब की ओर , 
मन में हिलोर लिए, आई है भोर। 

नभ में उड़े पंछी अपार,
करते है  कलरव, बार बार। 

कल कल बहे झरने हज़ार ,
ज्यूँ बह रही हो गंगधार। 

तरूवर की देखो , लंबी कतार,
 कुछ देवदार कुछ है चनार। 

पहने हुए फूलो का हार,
करे भोर देखो सिंदूरी श्रंगार। 

 उमड़ा है फिर  ऋतुओ का प्यार,
बन  बूँदो की  रिमझिम फुहार। 


हर भोर  जैसै कोई    त्योहार 
लाये  ये  रोज़  खुशियाँ अपार !! 

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