15 August 2015

ग़ुमशुदा इस सफर के मुसाफिर है हम


ग़ुमशुदा इस सफर के मुसाफिर है हम,
पूछे, दोनो जहाँ से, कहाँ के हैं हम? 

किसकी खातिर जीये किसकी खातिर मरे,
ऐ ख़ुदा ! तु बता क्या करे और हम ?

ख़्वाब देखे हुअे इक ज़माना हुआ,
आजकल आँखो में नींद आती है कम,
ग़ुमशुदा इस शहर के मुसाफिर हैं हम .........


ख़्वाहिशों के शहर हो गए अब  विरां,
बस  तन्हाई हैं और थोड़े हैं ग़म !
ग़ुमशुदा इस शहर के मुसाफिर हैं हम... ......

दिन ने कुछ न कहा, यूँ ही चुप वो रहा,
रात कोने में बैठी रही, ... ग़ुमसुम
ग़ुमशुदा इस शहर के मुसाफ़िर हैं हम .......

रेत पर छोड़ कर आए थे जो निशां,
वक्त के पानियों में हो गये वो ग़ुम,
ग़ुमशुदा इस शहर के मुसाफ़िर हैं हम........


ज़िदगी को मेरी अब ज़रूरत नहीं,
कब पता तोड़ दे, साँसे मेरी ये दम !
ग़ुमशुदा इस शहर के मुसाफ़िर हैं हम 
पूछे, दोनो जहाँ से, कहाँ के हैं हम? .......

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