21 March 2024

मेरी जाना

ये उलझी उलझी  सांसों का 

बे मतलबी सी बातों का 

हाथों में मेरे, हाथों का 

कांधो पे ढलके बालों का 

मेरी ख्वाहिशों का ख्वाबों से

ये राबतां है कैसा, मेरी जानां



वो कैडबरी की गिफ्ट का

वो बाइक की उस लिफ्ट का

वो पीछा करती स्विफ्ट का

वो दोस्ती में रिफ्ट का

ये माजरा है क्या मेरी जानां



वो खत वाली  किताबों का

मेरे सवालों के जवाबों का 

वो खिले खिले गुलाबों का 

आंखों में उन आदाबों 

मदहोश उन शराबों का 

क्या है  सिलसिला  ओ जानां ...


उस फलक  से इस ज़मीन का 

 उस शुबाह से इस यकीन का 

इक  प्यार  हो  हसीन सा

हो साथी इक जहीन सा 

तू ही अब मेरा हो मेरी  जानां...


~ संध्या प्रसाद 

6 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 23 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 23 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

हरीश कुमार said...

बहुत सुंदर

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर रचना

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत ही सुंदर..