बस तुम्हें औ तुम्हारा लिखा ही बाँचती रही हूं
तुम्हे सोना चांदी हीरा मोती सम मैं आंकती रही हूं
अक्षरशः पढ़ना तुझे जैसे सांस सांस लेना
तेरा वजूद तूफान सा और मैं पत्ते सी कांपती रही हूं
एक मंज़र सा तू, मिरी तलाश उम्र भर की
ढूंढने तुझे गली गली मैं धूल फांकती रही हूं
बेहिस बेलिबास छलकते इस रूमानी इश्क़ को
कुछ लिहाज़ कुछ झिझक से मैं ढांकती रही हूं
सात आसमानों से परे उम्मीदों के फ़लक पे
ख़्वाब मोती तेरे ताउम्र मैं टांकती रही हूं
है इजारा तेरा मेरे दिल पे मेरी शख्शियत पे उम्र से
अब होगा, तब होगा इशारा कोई, मैं भांपती रही हूं
होती रही हूं फेल मोहब्बत के हर इम्तिहान में
सूखे हुए गुलाबों की नमी फिर भी मैं जांचती रही हूं
हर बंधन ठुकराया रिश्ते कब स्वीकार किए
तुम तक जो पहुंचा दे हर सरहद मैं लांघती रही हूं
रेत कहां रही मुट्ठी में पानी बह गया चुटकी में
छोटे से आंचल में फिर भी मैं जग बांधती रही हूं
No comments:
Post a Comment