धरती चपटी
चांद भी चपटा
बादल पोले
पहाड़ है कितना
हट्टा कट्टा !
दिन लहसन की चटनी जैसे
रात है काली घुट्टी जैसे !
सांझ औ सवेरे
केसरी सी बुट्टी जैसे !!
वक्त ही कूटे ,
वक्त ही पीटे,
वक्त हुआ जैसे सिलबट्टा !!
हवाओं ने मारी मुंह से सिट्टी
गुल हुई गुलों की, सिट्टी पिट्टी
पिघली जब ये हिम शिलाएं
झरनों में कितनी धाराएं फुट्टी
रंग निखर गया
खुशबू बिखरी
फिजा हो गई रंगीं दुपट्टा
चिड़ियों की, चौपाल है बैठी
गाय भी थक निढाल है बैठी
गुनगुन छोड़ क्यों
भंवरों की चाल है ऐंठी ?
वादे करके
सच्चे झूठे
जगनु कर रहे हंसी ठठ्ठा
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