धरा चपटी
चांद चौकोर
रास्ते है गोल गोल
कुछ है गड़बड़
सब है गडमड
कह रहे ये हम बकलोल लोल
दिन हुआ काला
रात में हो रही फिर
रोशनी की ज्वाला
शाम को भोर होती
सुबह फिर देर तक सोती
तारे दिन में टिमटिमाते है
पंछी सुबह घर लौट आते है
कैसे कैसे किस्से
हो गई सारी झोलम झोल झोल
खोले तो कोई पोल पोल
मीन उड़ती
चिड़िया चलती
कौवा बोला
बात को तोल मोल
हिरण नाचे
अपने परों को खोल खोल
अंधेरे में उजाला
सफेद यहां पे काला
सच्चाई की कदर कैसी
झूठ का बोलबाला
नमक हुआ मीठा
हुआ गुड़ , डली नमक
समतोल तोल तोल
जड़े ऊपर
शाखें नीचे
चल रही हूं मैं
आंख मीचे
उल्टी बहती
नदी ये कैसी
गरम चीजें
ठंडी जैसी
बिगड़गया जहां का ही
खगोल और भूगोल गोल
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