8 January 2024

उल्टी पुल्टी दुनिया

 धरा चपटी

चांद चौकोर 

रास्ते है गोल गोल 

कुछ है गड़बड़

सब है गडमड

कह रहे ये  हम बकलोल लोल 


दिन हुआ काला 

रात में हो रही फिर

रोशनी की ज्वाला 

शाम को भोर होती

सुबह फिर देर तक सोती

तारे दिन में टिमटिमाते है

पंछी सुबह घर लौट आते है 

कैसे कैसे किस्से

हो गई सारी झोलम झोल झोल

खोले तो कोई पोल पोल 



मीन उड़ती

चिड़िया चलती

कौवा बोला

बात को तोल मोल

हिरण नाचे

अपने परों को खोल खोल



अंधेरे में उजाला

सफेद यहां पे काला

सच्चाई की कदर कैसी

झूठ का बोलबाला

नमक हुआ मीठा

हुआ गुड़ , डली नमक 

समतोल तोल तोल 



जड़े ऊपर

शाखें नीचे

चल रही हूं मैं  

आंख मीचे

उल्टी बहती

नदी ये कैसी

गरम चीजें

ठंडी जैसी

बिगड़गया जहां  का ही 

खगोल और भूगोल गोल 






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