23 December 2023

ख्वाबों का सिलसिला

 ख्वाबों का सिलसिला 

जब कभी यूं चल पड़ा

मैं ज़मीन पे चलूं

आसमां में  फ़िर उडूं

उलझ के तेरी बातों में

जालसाज नातों में 

जाने क्यों कैसे  दिल ये पड़ा...

ख्वाबों का सिलसिला 

जब कभी  आंखों में यूं चल पड़ा 



ख्वाहिशें थी तुम मुझे 

जहां और जब मिलो

हाथ थामे तुम मुझे

उस जहां में ले चलो 

जिस शय में दिन ढले

शब नींद में पले 

सुदूर उस क्षितिज पे 

सलोना सा हो  घर मेरा ... 

ख्वाबों का सिलसिला 

जब कभी आंखों में यूं  चल पड़ा



मैं कहकशां, सितारा तुम 

 नज़र मै,  नज़ारा तुम 

डगर मैं , तुम मंजिल बनो

धनक के सात रंगों से

पतंग की उमंग से 

इक उड़ान तुम मुझ में भरो 

झाड़ दो फूंक दो

कोई भी तरकीब हो

चांद को बस ताबीज़ कर दो ज़रा

ख्वाबों का सिलसिला जब कभी चल पड़ा 





२२/१२/२०२३





5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Rupa Singh said...

वाह! लाजवाब।

Onkar said...

सुंदर रचना