ख्वाबों का सिलसिला
जब कभी यूं चल पड़ा
मैं ज़मीन पे चलूं
आसमां में फ़िर उडूं
उलझ के तेरी बातों में
जालसाज नातों में
जाने क्यों कैसे दिल ये पड़ा...
ख्वाबों का सिलसिला
जब कभी आंखों में यूं चल पड़ा
ख्वाहिशें थी तुम मुझे
जहां और जब मिलो
हाथ थामे तुम मुझे
उस जहां में ले चलो
जिस शय में दिन ढले
शब नींद में पले
सुदूर उस क्षितिज पे
सलोना सा हो घर मेरा ...
ख्वाबों का सिलसिला
जब कभी आंखों में यूं चल पड़ा
मैं कहकशां, सितारा तुम
नज़र मै, नज़ारा तुम
डगर मैं , तुम मंजिल बनो
धनक के सात रंगों से
पतंग की उमंग से
इक उड़ान तुम मुझ में भरो
झाड़ दो फूंक दो
कोई भी तरकीब हो
चांद को बस ताबीज़ कर दो ज़रा
ख्वाबों का सिलसिला जब कभी चल पड़ा
२२/१२/२०२३
5 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
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सुन्दर
वाह! लाजवाब।
सुंदर रचना
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