ऐ चांद,
सिरहाने बैठें है वो,
आज सुनो तुम न आना ...
गर आ जाओ,
चुप ही रहना,
होंठों से औ,
आंखों से तुम,
कुछ भी कहने से
बाज़ आना ...
कैसे बातें होंठ करें जब,
खिड़की से यूं झांकोगे ?
बाहें कैसे बाहें थामे
जब बाम पे धम धम नाचोगे?
कैसे नैना इज़हार करें जब
तुम आंखों में जागोगे ?
कैसे पिय से प्यार करें जब
तुम टुक टुक हमको ताकोगे ?
सुनो ए चांद
हो चातक के तुम
प्रियतम हो कितने कवियों के ..
है एक अरज और बिनती हमारी
ये अरज तुम सुन जाना ...
आयेंगे जब अब साजन मिलने
उस रोज़ उफक पे न आना ..
और गर आ जाओ भूले भटके
स्याह घनेरे बादल के पार
आंख मूंद चले जाना
तुम न आना...
तुम न आना ...
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