ऐ चांद,
सिरहाने बैठें है वो...
आज सुनो, तुम न आना ...
गर आ जाओ,
तो कुछ न कहना
होंठों से औ' तुम
आंखों से भी,
बाज़ आना ...
तुम ही कहो कैसे
बातें होंठ करे ये,
खिड़की से तुम जब झांकोगे ?
उंगली कैसे उलझेंगी जब
बाम से तुम यूं ताकोगे ?
सांसें कैसे दहके मेरी
शब भर जो तुम जागोगे ?
महकें कैसे जिस्म हमारे
लोबान, तुम चांदनी से कातोगे?
सुन लो चांद... तुम
सुन भी लो ना
पूनम के तुम यूं
चांद बनो ना
दूज के चंदा
चाहे हो रहो न!!
तुमसे ये मिन्नत हैं हमारी
ये अरज तुम...सुन के जाना!
पीड़ जिया की
तुम ही मिटाना
दिन का तो लिहाज़ करें हम!
तुम को शब भर काहे सहे हम
कैसे, क्योंकर , समझाना ....
रात ढले तुम न आना..
चांद सुनो,
इब सांझ ढलो जो
बादल के पार, निकल जाना
युग जो बीतें
सदियां बीतें
वो जो हों गर पास हमारे
ख्वाबों में तुम न आना
ए चांद सुनो तुम .. न आना..
#बस_यूंही
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