मैं शायद कह न पाऊं
कि मैं तुमको चाहूं
हद से ज्यादा..
थोड़ा और ...
ख़ुद पे न कोई इख्तियार
न चलता कोई ज़ोर
तुझको बस, तुझको चाहूं
थोड़ा बस... थोड़ा और ...
रतजगे है
फलसफे है
इश्क़ के कैसे
मस्अले है
हिज्र है और
वस्ल भी है
वफा की कुछ
नस्ल भी है
जल रही हूं
पर जल न पाऊं
कैसा है क्यों है ये दौर
कर तू इसपे गौर ... थोड़ा सा थोड़ा और
कुछ नादानी
कुछ शैतानी
करता है दिल
आनाकानी
कनखियाें से देखता है
नज़रें तुझपे फेंकता है
पकड़ी जाऊं फिर लजाऊं
ख़ुद ही ख़ुद में सिमटी जाऊं
कह न पाऊं
और कह भी जाऊं
तेरी बाहें है ठौर
कर भी मुझ पे गौर ...थोड़ा सा ..थोड़ा और
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