नीली सी...
रूपहली सी...
ख्वाबों की ये तितलियां
इश्क़ में पली
रंगो में ढली
पतंगों सी ये तितलियां
धानी धानी ख्वाहिशें
और कत्थई सरगोशियां...
काली काली जुल्फों की
नर्म नर्म गर्मियां...
झीलों सी आंखों में दौड़े
नजरों की वो बिजलियाँ
नीली सी
नशीली सी
ख़्वाबों की ये तितलियां
देह की सुगंध जैसे
संदली कुछ डालियां
होंठ मखमली ऐसे जैसे
मोगरे की पंखुड़ियां
घुल जाए बातों में ऐसे
इश्क़ जैसे मिसरियां
नीली सी
नशीली सी
ख्वाबों की ये तितलियां
सांसों के उस शोर में
है बोलती खामोशियां
लम्स की उस डोर में
बांधती आगोशियां
उठ रहा धुआं ये कैसे
क्यों उठ रही चिंगारियां
नीली सी
नशीली सी
ख्वाबों की ये तितलियां
~ मैं ज़िंदगी
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