इश्क़ ए शराब ज़हर ये, नस नस को सर गई
इक पल को जी लिया मगर, ताउम्र मर गई
दरवाज़े दिल के बंद थे, दस्तके कब से मैं दे रही
ठौर कहीं तो पाऊंगी ये सोच दर, हर गई
देखा तुझे तो दिल को लगा खुदा को पा लिया
एक पल को सांसें सीने में जैसे ठहर गई
एक हूंक सी उठी दिल में और, वो मुख्तसर हुए
शोख ए नज़र उठ के झुकी, खंजर सी उतर गई
बदन था उसका क़ाफिया अदाएं रदीफ थी
लफ्ज़ लफ्ज़ शेर और बातें ग़ज़ल ए बहर हुई
तू था दुआओं में मेरी,काश मेरे सजदे कुबूल हो
भगवान के द्वार पर कभी, खुदा के घर गई
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