न वक्त
न हालात
न जज़्बात
मेरे काबू में
तू ही कह दे
मुझे तुझसे
मोहब्बत क्यों हो
कोई बेज़ार सा
बेगैरत कोई अहसास
दिन रात मुझे मथता है
तू ही बता
तुझ से
तेरे इश्क़ से, मुझे
अदावत क्यों हो
खुदा ऐसे ही
किसी किरदार की
तकदीर में हिज्र
कहां लिखता है
तेरे इस वस्ल से
तेरे उस हिज्र से
मुझको फ़िर
शिकायत क्यों हो
तू मुझे छोड़ दे
जिस लम्हा बस
उसी पल मर जाऊं मैं
हर दफा
मरने के गुनाह में
शामिल
ये कयामत क्यों हो
2 comments:
वाह!
वाह!
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