तेरे बिना मेरी सांसें
कहां धड़कती है
तेरे बिना मेरी रातें
बहुत सिसकती है
तेरी तलाश में हम तो
निसार ए जां, ख़ाक हुए है
सुनहरी आब लिए
सुबह चली आई है
पिघलते अब्र की रंगत
निखर के आई है
शबे आसमां पे भी
रूमानी छाई है
मैं भी हूं बाम पे
चांद की बस रोशनाई है
कैसे कहूं
ए मेरी जाने वफा
तेरे बिना
मेरे दर पे
चांदनी भी
कहां ठहरती है
तेरी तलाश में हम तो
निसार ए जां, ख़ाक हुए है
किसी के ज़ख्मों की किसको
कोई याद आई है
है कौन वफा का
कौन हरजाई है
इश्क की गलियों में
धुंध सी छाई है
गिरे तो संभले कहां
राह किसने
कब दिखाई है ?
कैसे कहूं
ए मेरी जाने अदा
तेरे बिना
मेरे दर पे
मौत भी अब
नही ठहरती है
तेरी तलाश में हम तो
निसार ए जां, ख़ाक हुए है
~मैं ज़िंदगी (संध्या राठौर)
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