28 July 2022

ज़ख्म हरा कोई माने!

 कब तक मन इंतज़ार यूं बोए

मिलन चुगे कब जाने

यादों के उस शजर से मन के

प्राण उड़े कब जाने 


कब आसां होता है जीना

कब आंसू ये मोती है

दर्द दबे हो दिल  में जब तो 

बातें नज़्में होती है 

दर्द का रंग कहां है कोई 

नीला नीला कोई बोए

ज़ख्म हरा कोई माने!


कब धागों सी सांसे है ये 

कब धागों  में सांसें है 

कब धागे ये उलझेंगे किस से

कब जिस्मों  को कातेंगे 

धागे कच्चे कच्चे होंगे

धागे कितने  पक्के होंगे 

कोई डोर खिंचे तो जाने 


खुशबू  के जंगल में 

मुझको कहां तुम ढूंढोगे

चुभ जायेगी कौन सी खुशबू

कौन सी खुशबू चुन लोगे 

धुआं धुआं सा मैं बदन हूं 

मैं  लोबान हूं मैं चंदन हूं 

कब से जलूं तू न जाने 


आंखे है जिस्मों का ज़ीना

 ज़ीने  से तुम आ जाओ 

ज़हर भरा है  लम्स में तेरे

ज़हर ये मुझमें भर जाओ 

कतरा कतरा जीना चाहूं 

नीला नीला होना चाहूं

ये रंग चढ़े तो माने



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