एक अधूरा सा सपना
लेकर अपनी इन आंखों में
चल पड़ी क्यों कब कहां
अब क्या रखा इन बातों में ??
एक अधूरा सा सपना ...
स्याह सी ये शामें मुझको
अब कहां बुलाती है ?
चांद की बाहें हमको
नींद कहां सुलाती है ?
शाम तो अब गुमसुम सी है
चांद भी कुछ चुप चुप सा है
दर्द है तन्हाई है
अब इन सुबह, इन रातों में...
एक अधूरा सा सपना ...
धूप के बोसे भी अब तो
जिस्म को सताते है
छावों के साए भी देखो
रूह को जलाते है
आसमां हैरां सा है
दरिया भी रूआंसा है
ख़ामोशी है सन्नाटे है
दिल के इन आहतों में ..
एक अधूरा सा सपना ...
ख्वाहिश के धागे जो मैंने
उम्र भर ही काते है
देह, ये उम्मीदों की
ढांक कहां अब पाते है ?
खुद पे अब गुमां क्या है
ख्याल में एक शुबाह सा है
बोझ है जैसे कोई
हर आती जाती सांसों में ..
एक अधूरा सा सपना
ले के अपनी आंखों में
चल पड़ी हूं ....
क्यों कहां कब
अब क्या रखा इन बातों में ??
2 comments:
खूबसूरत तुम सी
खूबसूरत
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