सांसों में दौड़े बिजलियाँ
साजन तेरी ये उंगलियां
माथे को छूकर गुज़रे वो
बालों में महके गजरे जो
कानो पे सर्र से सरके क्यों
साजन तेरी ये उंगलियां
देह के कितने मंज़र वो
पहाड़ थे समंदर थे वो
नदी सी वो छूकर गुजरे ज्यों
साजन तेरी ये उंगलियां
जिस्म में दर्रे है जो
पहरे लगे वहां पे हो
वहीं पे जा के ठहरे क्यों
साजन तेरी ये उंगलियां
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