17 June 2022

तेरे साए से लिपटकर रोया होता

 


तेरे साए से लिपटकर रोया होता

इतना तन्हा मजबूर मैं  गोया होता


गुल भी होते और बुलबुल होती

सूखे बंजर मे शजर कोई बोया होता


आ ही जाते ख्वाब तुम्हारे  सूनी सी इन आँखों मे

किसी रात गर सूकू से जो मैं भी सोया होता


करना  ही था जब तमन्नाओं का क़त्ल यूँही 

अपने दामन से काश ये  तो दाग़ धोया होता


सर झुकाए हुए यूं न चलता ' ज़िंदगी'

गर गुनाहों को कांधो पे यूं न ढोया होता




1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जज़्बातों से लबरेज़ ग़ज़ल । बहुत खूब