ख्वाहिशें तेरे दर पे आके
रुक गई है
मन्नतें तेरे दर पे आके
झुक गई है
अब यहां से मेरा
जाना होगा फिर कहां ?
तू मिरी तिशनगी
तू मिरी आवारगी
तू ही हैं मेरी जन्नत
तू जहां
तू है जहां जहां
मैं रहूंगी बस वहां .....
रोक पाऊंगी दिल में
तुझ को कब तक
मैं भला ?
वक्त ठहरा कब कहां ,
ये चला
वो तो हां चला ..
इक एक पल मैं जोड़ लूं
पहनूं तुझको , ओढ़ लूं
हर राह तुझपे
मोड़ लूं
अब तो आजा तू नज़र
जिस्मों जां में तू उतर
फिर राते हो या हो सहर
कर मुझमें तू बसर
न रोक पाऊं ज्वार ये
मैं, जलजला
भर दे मुझमें जो है,
वो ख़ला ।
तू है तो फ़िर किससे,
क्यों हो अब गिला
मैं बस चलूं
जहां तू ले चला
कि अधूरा मैं हूं तेरा
सिलसिला
.....
6 comments:
जहाँ तू वहाँ सारा जहाँ मेरा ...... समर्पण को कहती अच्छी नज़्म ।
जहाँ तू वहाँ सारा जहाँ मेरा ...... समर्पण को कहती अच्छी नज़्म ।
आपकी लिखी रचना सोमवार 13 जून 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत सुंदर प्रेमाकुल अभिव्यक्ति।
सादर।
वाह!!!
बहुत सुन्दर सृजन।
वाह!!!
बहुत सुन्दर सृजन।
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