2 June 2022

तेरी आंखों से

 



तेरी आंखों से...

तेरे होंठों से ...

हमने तो शब भर बात  की ...

कब दिन ढले 

कब रात हो

यूं वक्त से फ़रियाद की ....


सोचा कभी 

तेरे इश्क़ का 

क्यों न एहतराम मैं कर ही लूं

तेरी चाहों में 

तेरी बाहों में 

उम्र ये तमाम  मैं कर ही लूं

तू चला गया 

मुझे छोड़ कर

तेरे  इश्क़ की ये मियाद थी..

अब तू नही 

तेरी यादों से 

हर लम्हा हर पल  बात की



7 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्रेम से सराबोर रचना ।

अनीता सैनी said...


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

जिज्ञासा सिंह said...

प्रेम के अहसास से लबरेज़ मर्मस्पर्शी रचना। मेरे ब्लॉग पर स्वागत है ।

जिज्ञासा सिंह said...

प्रेम के अहसास से लबरेज़ मर्म स्पर्शी रचना। मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

विश्वमोहन said...

वाह!!! विकल विरह भाव का बहुत सुंदर चित्रण!!!

Anita said...

जो बात मिलन में घटित नहीं होती वह विरह में हो जाती है, कोई गोपी राधा तभी बनती है