4 May 2022

उड़ान फिर फलक में भरते है

  ख़त्म अब राबते सब

आज उसके दर से करते है 

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..


ज़ख्मी है रातें  

रूठे है  दिन ये

शामें  उदास है

कुछ उसके बिन ये...

पर, बीतें लम्हों का चल,

आज कोई गम न करते है ....

हौसला हर घड़ी  हर शाम ,

हर सहर  में भरते है ...

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..

ख़त्म सब राबते चल

आज उसके दर से करते है 


झूठे थे वादें

और झूठे इरादे 

वफ़ा को ऐसी 

भी क्या कोई सजा दे ?

पर, उलझने  चल आज दिल की 

थोड़ी कम  सी करते है ....

ज़िंदगी उड़ान है , उड़ान फिर

खुले अंबर में भरते है ...

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..

ख़त्म सब राबते चल

आज उसके दर से करते है 


~संध्या राठौर




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