18 May 2022

कभी तो नज़र मिलाओ




सुनो न ...

ऐसे बात बात पे कोई खफा होता है क्या ?

थक गई हूं मनाते मनाते ...

कभी यूं भी तो हो 

मैं रूठूं और तुम मनाओ ....

कई बार सोचती हूं कि   एक कागज़ के पुर्जे  पे  तुम्हारा नाम लिख दूं

तुम्हारे नाम के इर्द गिर्द कुछ आड़ी तिरछी लकीरें खींच दूं

कुछ तिलिस्म भर दूं उन आड़ी तिरछी लकीरों में फूंक  दूं कोई मंत्र 

और फिर इस पुर्जे को बांध  कर एक  काले कपड़े में....

कुछ  टोटका कर दूं उनमें...

कि जब तुम देखो उन्हें छुओं उन्हें 

बंध जाओ उस टोटके से , उस मंत्र से ...उस तिलिस्म से 

और एक ऐसी तिलिस्मी दुनिया में पहुंच जाओ ...

जहां मेरे अलावा कोई  आ न सकता हो ....

तुम खूबसूरत सी लकीरों में बंधे हुए 

मेरे गले में 

या बाजू या कमर में लटकते रहो एक ताबीज़ की तरह ....

हर बुरी नज़र से बचा कर रखूंगी तुम्हे !!

.

.

.

मगर तुम ?

तुम तो जैसे घटा हो ..

बरसते हो और फिर चले जाते हो 

कभी  तो  मेरे साथ तमाम उम्र  और उसके बाद भी  संग जीना चाहते हो ...और ..

......कभी मुझे छोड़ जाने कहां ऐसे चले जाते हो जैसे मुझे कभी जाना ही न था   और बुझा ही न था !!

क्यों करते हो ऐसा ? 

अचानक सब  कुछ सौंप देना अपना  और फिर सब छीन लेना मेरा ...

 कोई समुंदर हो जैसे ...

कितनी ही  दफे ....मुझे  खुद में डुबो देते हो तुम  .....और फिर अगली आने वाली लहर से साहिल पे फेंक देते हो  .......जैसे मैं कुछ थी ही नहीं ....

......

कब तक  ऐसे सांसों को रोक पाऊंगी मैं ? 

कब तक ऐसे जी पाऊंगी मैं?

सुनो न .... आओ न.. 

ये जो ताबीज़ है  न मेरे पास तुम्हारे नाम का  -  

अब के उसपे अपने काजल का टोटका लगाया है मैने .... 

आओ  न ....तुम्हारी इस दाहिनी बाजू पे बांध दिए देती हूं ...

फिर... तो करीब हो जाओगे  न मेरे  ?

सुनो...

मैने त इंतज़ार किया है तुम्हारा,  हमेशा  से... 

आगे भी करती रहूंगी ... कायनात तक ...

तुम आओगे न?


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