सुनो
ये जो कुछ रातें है न,
थोड़ी खाली सी है
आबनूसी काली सी है!
कहती है वे,
तुम्हारी यादों के
शज़र के ही
टूटी कोई डाली ही है!
तुम गर कह दोगे तो
शायद ये
गुज़र जाएगी ये
जैसे गुज़र गए थे
तुम जिंदगी से
वैसे भी
सच कहां है ये
तुम सी
तुम्हारे वादे
तुम्हारी बातों सी
जाली ही तो है
1 comment:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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