मैं किस्सा हूं सुनो कुछ मैं कहूं
एक प्रीत पुरानी सा मैं जुनूँ
कुछ वादों के, कुछ यादों के
हम कहे सुने तराने कभी कभी
मैं दिन हूंं, धूप में जलूं बुझूं
मैं हवा हूं , मैं फिर भी न बहूँ
शामों को क्षितिज सिरहाने पे
जडूं चांद सितारे कभी कभी
मैं बादल, धम धम गरजा करूं
मैं बिजली सी पल पल मचला करूं
मैं बूंद हूं , किसी बहाने से
पायल सी छनकू कभी कभी
मैं फूल सी खुद ही लरजा करूं
शबनम सी खुद ही पिघला करूं
तेरे आंखों से , तेरे होंठो से
मचलूं खुद को मैं कभी कभी
मैं ख्वाहिश हूं दिल में दुबकी रहूं
मैं चाहत हूं नस नस में पलूं
तन्हा ख्वाबों के मौसम में
धडकूं तेरे दिल में कभी कभी
मैं इश्क़ हूं मैं हर रंग बनूं
मैं इश्क़ हूं, मैं हर रंग ढलूं
बस धूप धनक के रंगों सी
बिखरूं तुझमें मैं कभी कभी
3 comments:
बहुत ही अच्छी रचना है, शानदार शब्दों और भावों का प्रवाह...खूब बधाई
मन की अनुभूतियों और उमरते अरमानों को आपने बेहद खूबसूरती से पंक्तियों में ढ़ाला है जो अत्यंत ही आकर्षक है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।।।।।।
शानदार परिचय ...
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