28 May 2021

निहारिका हो जाए

एक आकाश गंगा से तुम ,

एक निहारिका सी मैं !

अगनित तारों और सूरज से 

भरे तुम,

और iकितने ही नजारे 

समाए हुई मैं !


एक काल से 

जल रहे हो  तुम,

एक समय से 

धधकती हुई सी मैं !


दूर सुदूर  उस ब्रह्मांड में 

बसे हुए तुम,

और 

कुछ प्रकाश दूरी पे  

ठिठकी  हुई सी मैं !


सदियों से अपनी ओर मुझे

खींचते  हुए तुम,

अनादि से तुम्हे

सम्मोहित करती हुई मैं !


सदियों की इस

रस्साकशी में,

न जीते हो तुम,

और न हारी हूं मैं !


तो आओ,

इस "मैं"  को मिटा कर 

और 

इस "तुम"  को भुला कर 

बस राख राख 

 धुआं धुआं हो जाए !

 

तितली के दो पंख सम

आज से ,अभी से 

 "तितली  🦋 निहारिका"

हम हो जाए !


और  फिर जन्म दे

अगनित तारों को,

सौर्य मंडलों को,

और 

अनेकों ऊर्जा पिंडों सी

तुम्हारी और  मेरी 

अनंत  संततियो को !!



1 comment:

PRAKRITI DARSHAN said...

बहुत ही अच्छी रचना है...वाह बहुत गहन विचारों को समेटे हुए।