8 May 2020

चांद को इश्क़ है


चांद को इश्क़ है 
धूप से क्यूं भला ?
रातों के  ....
चांद का ....
दिन की धूप से 
ये सिलसिला 
क्योंकर चला 
कहो तो ज़रा....


चांद के कांधे पे 
काला सा कोई तिल है कहीं 
अटकी है धूप की 
शोख़ नज़रे   दिल भी वहीं 
स्याह से  दाग में
धूप की गर्मियों को 
नर्म सा एक साया मिला 
क्योंकर भला ...


धूप की देह में 
बिखरे हुए है रंग कई
बज उठे नेह के 
 ढोल  सितार  मृदंग कई 
 पानी की बूंद से 
 धूप धनक साया मिला 
क्यों कर भला 









1 comment:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

नए कलेवर की बेहतरीन रचना। चाँद को सूरज से इश्क है क्यूँ भला???? वाह