8 July 2019

मुक्ति दो मुझे !

प्रेम की चिता से
भड़भड उठती
लपटों में
धुएँ .. गरमी...
ज्वाला से
अनंत में विलोप
होते  तुम ...
और
शमशान में
बच रह गई 
राख ...हड्डियों .. 
खोपड़ियों सी ...
बिखरीं पड़ी मैं

सुनो समाज ..
तुम्हें आपत्ति थी न 
मुझसे और मेरे प्रेम से!
तो आओ ...
मेरा
और मेरे प्रेम का ...
पिंडदान करो !!

मुक्ति दो मुझे !!

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