तुम लिखना
इश्क़ निचोड़ कर
बची रह गई
वो सूखी बेबस
बेजान लड़कियाँ..
तुम लिखना
आलमरी की
अंधी गूँगी दराजों में
पड़े ख़तों में
नाकाम इश्क़ की
भेंट चढ़ी लड़कियाँ..
तुम लिखना
इश्क़ होंठों से लगा
जान फूँकती
जली सिगरेट के
टुकड़ों में क़ैद
वो बेदम सी लड़कियाँ ..
सुनो इश्क़,
जब लिखो
तुम मुझे ...
तो लड़कियाँ ये तमाम लिखना !
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