26 June 2019

इश्क़ के रेशे

गर याद हो तुम्हे  ...
मेरी कलाई पे
टाँकों के निशान
पड़े थे,
जब मेरी देह से
तुम्हारा इश्क़
लहू हो ....बह गया था,
सारा का सारा !!

अब जब कि
मेरी धमनियों में
नया ख़ून बहने लगा है,
बता दूँ तुम्हें ...
कुछ क़तरे, कुछ रेशे,
कुछ टुकड़े 
तेरे इश्क़ के
फँसे, धँसे रह गए थे
उन टाँकों में !! 

रिसते है ये टाँके ..
इन टाँको  में फँसें 
इश्क़ के टुकड़े ,रेशों 
रह रह के टीस देते है ....

मगर अफ़सोस 
ये इश्क़ के रेशे 
किसी Toothpick 
या चिमटे से 
निकाले नहीं जा सकते  
ये रहते है सदा
नासूर बन के !!

ऐसा है ये कमबख्त इश्क़ !!

No comments: