26 June 2019

किरकिरी नहीं बनूँगी मैं

मान लिया
पत्थर हूँ मैं
मगर सुनो ..
यदि अपने
उँगलियों से
होंठों से
अल्फ़ाज़ों से शायद
तराशोगे मुझे तो
कदाचित् बुत हो
पूजी भी जाऊँ?
या मुमकिन है
खंडित हो गई तो
धरोहर भी हो जाऊँ ?

न अपनाओ तब भी
वक़्त के बहाव में
कट कट के
सुनहरी रेत तो
हो ही जाऊँगी शायद
और फिर मुमकिन है
तुम्हारे ही मकाँ
का हिस्सा हो जाऊँगी
या
सेहरा में या दरिया में
जरर्र से
मुट्ठी से फिसल
हवा में दूर
क्षितिज पे खो जाऊँगी ..
मगर
यक़ीन मानो
मैं कभी भी
कभी भी तुम्हारी
आँखों की
किरकिरी नहीं
बनना चाहूँगी !

No comments: