3 November 2018

MeToo

मैंने उसके
अंधेरे को देखा था
उसके मौन को भी
सुना था ...

साँय साँय कर रही थी
हवा भी
और पानी भी
सहम सा गया था
और खोह कंदरा
पहाड़ों में घाटियों में
जैसे वो थम सा गया था
या जम सा गया था !!


और फिर
आसमान भी यकायक
क्षितिज से गिर पड़ा था !!!
तारें और चाँद का
कोई टुकड़ा इधर
तो कोई उधर पड़ा था !!


कहीं कहीं से उसकी
चमड़ी जली हुई थी,
और कहीं कहीं से
उखड़ भी गई थी !!
नसें भी
दिखने लगी थी ..
आँते उसकी पीठ से
चिपकने लगी थी !!

पीला पीला
चेहरा था उसका,
धँसी थकी ...हुई सी आँखे
अंदर को मुड़ गए
लकड़ी से पाँव !

 ख़ून  ही कहाँ था ?
धरा का तो
हीमोग्लोबिन भी
४ हो गया था
और
पारा ३७ से पार
हो गया था ...

और फिर
टूटी थकी साँसे
लेते लेते
उसने मुझे कहा था -
तुम भी तो औरत ही हो न ?
मैंने कहा था - हाँ, हूँ तो !

धरा ने फिर कहा,
सुनो-
अब और  शोषण सहने की
मुझमें हिम्मत नहीं है ...
नर्क होता है गर
तो वो यहीं है यहीं है !

सुनो ..
.मैं बीमार हूँ
बहुत बहुत ...बीमार हूँ !!
मैं शारीरिक मानसिक
और आध्यात्मिक
शोषण  का शिकार हूँ !!


कहो
बात मेरी क्या कोई मानेगा?
क्या कोई चैनल ...
या अख़बार
मैं भी हूँ #MeToo की शिकार,
मेरी दास्तान छापेगा ??

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