आवाज़ें जब बूढ़ी होती है
तो वे ख़ामोश रहने लगती है
होंठ सिलें रहते है
मगर आवाज़ें चेहरे की
झुर्रियों में
और झुकीं पीठ में
रहने लगती है
काँपते हाथों से
क़दमों से
सब कहने लगती है
क्या तुम्हें
काँपते हाथो की
और लड़खड़ाते क़दमों की
ज़ुबाँ पढ़नी आती है ?
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