मैं धरा होना चाहती हूँ
रंग हरा होना चाहती हूँ
कि हर वो पेड़
जो ज़िन्दा है
दिखावे के लिए नहीं बना,
हरा है !
ठंडक पहुँचती है ...
हरे पत्ते से लदे पेड़ों से,
तुमको मुझको सभी को !
सकूँ ज़रा सा बोना चाहती हूँ ,
मैं ज़रा सा हरा होना चाहती हूँ ...
हरी हरी काई
उग आती है
वहाँ भी ...
जहाँ रोशनी भरपूर
नहीं पहुँचती,
पानी थमा रहता है जहाँ,
काई अक्सर वहाँ भी
जम ज़ाया करती है !!
मैं दर्द में, नाउम्मीदी में,
उम्मीद बोना चाहती हूँ,
मैं ज़रा सा हरा होना चाहती हूँ ...
हरा एप्रोन ही तो
पहनते है सर्जन
कि ख़ून के
लाल लाल धब्बे
महज़ काला रंग
इख़्तियार कर लेते है ...
और फिर
मरीज़ और रिश्तेदार
सभी की,
चिंताए घुल जाती है,
दब जाती है ,
उस हरे रंग में ...
मैं रंजोग़म हर डुबोना चाहती हूँ
मैं ज़रा सा हरा होना चाहती हूँ
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